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Sana K S

Romance

3  

Sana K S

Romance

पिछले बरस में दिसंबर....

पिछले बरस में दिसंबर....

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शायद तुम्हें हल्का- हल्का सा याद तो होगा,

पिछले बरस की दिसंबर की सर्द हवाओं में,

हम छिप- छिप के कहीं बार मिला करते थे,

तुम मिलने और ना मिलने के बहाने भी खोजा करते थे,

जैसे -जैसे सर्द हवाएँ बढ़ती गयी,

हम दोनों में भी नजदीकियाँ बढ़ती ही चली गयी,

रात-रात भर फोन पर बाते होती थी,

सर्द हवाओं में जो बढ़ती और कम होती तुम्हारी साँसे थी,

उनमें जीना अच्छा लगने लगा था,

नजदीकियों में हल्का-हल्का गर्म पन आते चला गया था,

मिजाज का मौसम जैसे बदल के मार्च हो गया था,

तुम्हें अब कहाँ मेरी ठंड भाँति थी,

तुम में तो अब अहंकार की लू चल पड़ी थी,

कैसे साथ रहते मेरे,

मैं कैलाश के बरफ सी ठंडी और,

तुम्हारे अहम का राजस्थानी रेत गरम से तपता ही चला गया,

मैं पिघल के तुम्हें ठंडा तो कर भी देती,

पर सर्द हवा गरमी के मौसम में कहाँ होती है....

बस यही पर सब खत्म कर चल देना तुम्हारा.....

याद तो होगा ही ना.....



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