नई दुनिया
नई दुनिया


दादी के गाँव जाना
लगता है भला मुझे,
शहर की दुनिया से अलग
एक नई वहाँ दुनिया बसे।
परंपरा अनोखी अंदाज-
कुछ निराला है
गाँव में मेलो का मज़ा मतवाला है।
मिट्टी व लकड़ी के खिलौनों
से बाजार सजे
देख रंग बिरंगे खिलौने
बाल मन है नाच उठे।
सुबह सवेरे जल्दी उठकर
दादा खेतो को जाते है
अर्र र र कहते हुए
बैलो को दौड़ाते है
टूटी हुई खाट देखो
माधो से बुनवाते है
मयकु भैय्या आते
गैय्या दुहते दूध लाते
पीते हम दूध और खोवा भी बनाते।
हरियाली फैली चहुँ ओर
कोयल बागो में कूंक रही
लहराते तालाबो में
गाँव की भैंसे डूब रही
बड़ी अम्मा जब लिए
मथानी माखन दूध बिलोती है
छाछ के प्याले भर भर
अम्मा हमको यारो देती है
शुद्ध हवा, शुद्ध भोजन
पावन प्यारी संस्कृति है
तभी तो कहते देखो भैय्या
अपने गाँव की मिट्टी है
सादर बड़ो को बैठाते
और छोटो को है प्यार मिले
तभी तो गर्मी जैसे आये
दौड़ के हम तो गाँव चले