नि:शेष साहस
नि:शेष साहस
हमे न यूं अब इतना परखिए,
हमारी भी हिम्मत खत्म हो रही है।
नज़रिया हमारा भी तो समझिए
नज़रिया हमारा गलत तो नहीं है।
हमारी ये चुप लाज़मी है तभी तो,
सफर हमसफर ये सफर हो रहा है।
हमे न यूं अब इतना परखिए,
हमारी भी हिम्मत खत्म हो रही है।
ज़बा से न बोले कि तहज़ीब है ये,
मुखातिब है हम भी ज़माना समझ ले।
समझाने को बाकी बचा और क्या है,
ग़मो का हमारे अब शिखर हो रहा है।
हमे न यूं अब इतना परखिए,
हमारी भी हिम्मत खत्म हो रही है।
हमसे होता है जितना कर भी रहे है,
अवगुण से फिर भी भरे ही हुए है।
ख़ुशियाँ भी हमारी हमसे नहीं है,
न जाने ख़फ़ा सी वो क्यूँ हो रही है।
हमे न यूं अब इतना परखिए,
हमारी भी हिम्मत खत्म हो रही है।