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Dr Sanjay Saxena

Others

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Dr Sanjay Saxena

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नारी

नारी

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आज कल की नारी

नहीं रही बेचारी

पहने हैं जींस, टॉप

छोड़ दी अब सारी

आजकल की नारी ।

खत्म कर दिया पर्दा

कर रही वह गर्दा

खाकर पान सिगरेट और जर्दा

बन रही व्यभिचारी

आजकल की नारी ।

जीवन के खेल में

बस हो या रेल में

स्कूल या फिर जेल में

बढ़ी है संख्या भारी

आजकल की नारी ।

जीवन के हर क्षेत्र में

मिलाकर चले हैं कंधा

नौकरी हो या धंधा

अच्छा हो या गंदा

छोड़ दी शर्म

सारी

आजकल की नारी ।

जीवन के अनेक रूप में

छांव में या धूप में

मां ,भाभी, बहन, गर्लफ्रेंड या सारी

दिखती हर रूप में न्यारी

फिर भी लगे वह प्यारी

आजकल की नारी ।

मौसम और समाज से

साहूकार के ब्याज से

औरत के मिजाज से

दुनिया ही हारी तो

फिर क्या औकात हमारी

आजकल की नारी

आजकल की नारी ।।

              



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