नारी
नारी
आज कल की नारी
नहीं रही बेचारी
पहने हैं जींस, टॉप
छोड़ दी अब सारी
आजकल की नारी ।
खत्म कर दिया पर्दा
कर रही वह गर्दा
खाकर पान सिगरेट और जर्दा
बन रही व्यभिचारी
आजकल की नारी ।
जीवन के खेल में
बस हो या रेल में
स्कूल या फिर जेल में
बढ़ी है संख्या भारी
आजकल की नारी ।
जीवन के हर क्षेत्र में
मिलाकर चले हैं कंधा
नौकरी हो या धंधा
अच्छा हो या गंदा
छोड़ दी शर्म
सारी
आजकल की नारी ।
जीवन के अनेक रूप में
छांव में या धूप में
मां ,भाभी, बहन, गर्लफ्रेंड या सारी
दिखती हर रूप में न्यारी
फिर भी लगे वह प्यारी
आजकल की नारी ।
मौसम और समाज से
साहूकार के ब्याज से
औरत के मिजाज से
दुनिया ही हारी तो
फिर क्या औकात हमारी
आजकल की नारी
आजकल की नारी ।।