नारी की चाह
नारी की चाह
चाह नहीं है कि
तुम यूँ मुझे चाहो,
न कोई वादा करो,
न पसंद है मुझे
कि रूप को संवारो,
न पुष्प की अभिलाषा मुझे,
न चाहिए उपहार मुझे,
देना है तो दे दो,
बस जीने का अधिकार मुझे,
न देखो मुझे कामिनी रूप में,
कभी तो देखो मुझे भी सम्मान से,
दे दो हर नारी को सम्मान,
लौटा दो आज पुनः मान सम्मान,
क्या दे पाओगे मुझे वो मेरी खोयी प्रतिष्ठा,
क्या बदल पाओगे मेरी निष्ठा,
न दो तुम मुझे कोई नए वादे,
पर बस ये वादा करते जाना,
बस हर नारी का सम्मान करते जाना,
देख लेना जब कष्ट में कोई नारी,
कष्ट मिटाना उसका भारी,
जाग जाओ तुम हे नर,
सद्भावना अब कुछ जगाओ,
प्रतिष्ठा नारी की पुनः लाओ,
काट हर परतंत्रता की बेड़ी,
मुझे मन मंदिर में बसाओ।।