नारी और न्याय
नारी और न्याय


सदा दर्द में जीती आई, मिला नहीं न्याय,
सदियों से शोषित रही, होता रहा अन्याय,
आजीवन कष्टों में रहती, कहलाती बेचारी,
चीर हरे, कभी हरण करे, जग व्याभिचारी।
कमजोर नहीं काम में, फिर भी है अबला,
उसकी सुंदरता समक्ष, पुरुष बजाये तबला,
न्याय की खातिर जगत, दर दर भटके नारी,
काम वासना के लिए, बहुतों को लगे प्यारी।
सतयुग में तारामती, करती थी घर में काम,
हरिश्चंद्र मरघट करें, बिके सरदार डोम नाम,
रोहित उनका मारा गया, पहुंची मरघट द्वार,
न्याय नहीं मिला वहां, अंत में जीत गई हार।
त्रेता में सीत
ा नारी, रावण ने किया अपहरण,
सीता को न्याय मिले, श्रीराम पहुंचे तब रण,
रावण पापी नष्ट हुआ, देर में मिला था न्याय,
फिर एक जन बोल से, वन गमन था अन्याय।
द्वापर युग भी नहीं भला, द्रोपदी का हरा चीर,
भटकती रही हर द्वार पर, कृष्ण हर लिया पीर,
द्रोपदी के चीर हरण का, भीषण हुआ नर संहार,
पांडव जग में जीते थे, कौरव गये युद्ध में हार।
हर युग में सहती आई, अन्याय पर ही अन्याय,
दे रही आज दुहाई, कर दो अब तो कोई न्याय,
आयेगा कल्कि अवतार, कर देता नारी का न्याय,
विष्णु लीला को देखना, करो मिलन का उपाय।।