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निखिल कुमार अंजान

Others

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निखिल कुमार अंजान

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न राम है न रावण है.....

न राम है न रावण है.....

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न राम है न रावण है

ये कलयुग की रामायण है

युगों युगों से सुन रहे थे जो गाथा

वो बनके रह गई मनोरंजन का साधन है

यहाँ हर मोड़ पर खड़ा इक दानव है

न कोई रावण जैसा सच्चा ब्राह्मण है

न शबरी के वो झूठे बेर है

न बचा इब दिलों मे प्रेम है

न कोई वचन निभाने वाला है

पिता के कहने पर न कोई

वनवास जाने वाला है

न लक्ष्मण जैसा भाई है

मन मे बस नफरत की खाई है

न मर्यादा पुरुषोत्तम राम है

जो समझे माता पिता के चरणों मे ही चारो धाम है

न सीता सी कोई सती है

वैचारिक मतभेदों पर वो अब अड़ी है

न हनुमंत जैसा कोई सखा है

जो सुख दुःख की घड़ी मे संग खड़ा है

रामायण के अन्य पात्र भी बदल रहे हैं अपना स्वरूप

कलयुग का इंसान भूलता जा रहा है अपना मूल रूप

न राम है न रावण है

ये कलयुग की रामायण है........




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