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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Others

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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मोरहंस

मोरहंस

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चलते चलते रुक गया

देखकर बंद पड़ी घड़ी

नगर चौराहे पर खड़ी

विशाल मनोहारी घड़ी

आजादी के पहले से

यथावत अनवरत चलती

घंटा घर वाली बड़ी घड़ी

लॉकडाउन में क्यों बंद हुई

ऐतिहासिक घंटाघर की घड़ी

अगर कोरोनाकाल ना होता

छः फिट की छोटी सुई का रुक जाना

राष्ट्रीय खबर बन जाता !!


रात के सन्नाटे में तीनों सुइयाँ

जब एकत्र होकर

बारह बजने का घंटानाद करती

नगरवासियों में एक उम्मीद जगती

नव विहान की, नयी रोशनी की

नगर को गहन अनुभव है

अलग अलग तरह के बंद का

पहला एहसास है स्वतः बंद का

बंद में खुश रहने का

बंद में सुरक्षित महसूसने का

संतोष होता, सुकून मिलता, अच्छा लगता

अपने नगर का नाम जब न्यूज़ नहीं बनता

सच लगता है अब गीता का ज्ञान

निष्काम कर्मयोग, साक्ष्य भाव

भला भी सही

बुरा भी सही

मिल जाना भी सही

मिट जाना भी सही

हँसी भी अपनी नहीं

रूलाई भी परायी नहीं

मन भर भर कर जीना

मन में भरकर ना जीना ।।

यह भी सही वह भी सही

हम भी सही तुम भी सही

हंस मरते वक्त भी गाता है

मोर नाचते वक्त भी रोता है

नाचते वक्त हँसना सीखो

मरते वक्त गाना सीखो

प्रयास करो बन जाने का

कर्मयोग का  मोरहंस ।।



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