मंजर
मंजर
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खिड़की दरवाजे खुले हो तो रिश्ते सांस लेते हैं।
वरना एक कमरे को भी कई हिस्सों में बांट लेते हैं।
हम तो समझे वह हाथ थामने आए हैं ।
किसे पता था पल्लू झाड़ने आए हैं।
बगल में गर खंजर हो।
खुशनुमा कैसे कोई मंजर हो।