मिलने चले आना ऐ दोस्त
मिलने चले आना ऐ दोस्त
बहुत दिन बीत चुके हैं दोस्त, मुलाकात नहीं हुई है तुमसे,
हो सके तो वक्त निकालकर, ऐ दोस्त ! मिलने चले आना,
यादों का ख़्वाब तो है, वक्त के साथ गुजरते इन लम्हों में,
पर चाहते हैं अपनी दोस्ती के का हर क्षण को गुनगुनाना,
कितना वक्त गुज़र गया, साथ दोस्तों की महफ़िल सजाए,
आज भी दिल में ताज़ा है, दोस्ती का वो खूबसूरत तराना,
सब कुछ है पास पर तेरे बिना ये ज़िंदगी अधूरी लगती है,
दोस्ती की महकती उस बगिया को मुश्किल है भूल पाना,
तेरा साथ मेरी हर मुश्किल राह को कर देता था आसान,
याद है आज भी, हर उलझन को तेरा पल में यूं सुलझाना,
वो गलियों की मस्ती, वो खिलखिलाती शाम याद आती है,
सच कहूं तो जन्नत है तुम्हारी दोस्ती जैसी दौलत का होना,
मैं भी व्यस्त हो गया था ज़िंदगी की उलझनों में इस कदर,
कि तुम दिल में तो थे मौजूद पर हो न पाया तुमसे मिलना,
ज़िंदगी के हर रंग में, अनोखा, खूबसूरत है दोस्ती का रंग,
दिल भर आता है आज भी याद कर वो दोस्ती का ज़माना,
कल साथ जीया करते थे हम, आज मिलने को भी तरसते,
आज फिर चाहते हैं हम तेरे कदमों के साथ कदम मिलाना,
एक बार आओ वक्त निकालकर, फिर वक्त मिले ना मिले,
एक अरसा हो गया है सिमटे हुए, हंसी ठिठोली का खज़ाना,
आओ साथ मिलकर खींच लाते हैं वो पल, हम ज़िन्दगी में,
जहां ग़म नहीं केवल खुशियों को ही जानते थे हम समेटना।
