महंगाई
महंगाई
आम जनता के लिए बार-बार मुसीबत आई,
जब एक नई सरकार हर बार सत्ता में आई।
प्रकाश के रफ्तार से बिन बुलायें आई,
दम-खम के साथ फिर डायन महंगाई आई।
आम जनता का बैंड बजाते,
बॉय –बॉय ,हाय-हाय करते।
मुंह –तोड़, कमर –तोड़, जनता की जेब काटते,
नई बोतल में पुरानी महंगाई की शराब आई नाचते।
कूटनीति से चुनावी घोषणा-पत्र बनवाया,
आशावादी जनता को विश्वास दिलवाया।
शीर्ष पर रखा महंगाई हटाने का नारा,
जब सरकार बनी तो किया किनारा।
जब महंगाई ने जनता को बुरी तरह से फटकारा,
पक्ष-विपक्ष ने साथ मिलकर महंगाई को ललकारा।
दोनों की ललकार से काले व्यापारियों के सहयोग से,
महंगाई ने ली अंगड़ाई और छेड़ी नकली लड़ाई।
गरीब सरल जनता कूटनीति समझ नहीं पाई,
मगर महंगाई ने सभी से राहत पाई।
महंगाई से त्रस्त जनता को उकसाया,
नेताओं ने नमक छिड़का कर उकसाया।
महंगाई के बदले, भोली जनता को सताने,
चंदा व्यापारियों और नेताओं को बचाने,
धर्म, जाती, भाषा और प्रांतों के नाम पर,
देशवासियों को खड़ा किया आमने-सामने।
महंगाई ने अपने कूटनीतिक शक्ति से,
नेता और प्रशासन की मिली भगत से,
नेता के षड्यंत्र ने भाई- भाई को लड़वाया,
महंगाई ने हमेशा ही चोरों का साथ निभाया।
