मेरी तन्हाई
मेरी तन्हाई
ऐ मदमस्त हवा कुछ देर तो ठहर
कभी दर से मेरे गुजर
मन मेरा करता है तेरे संग जाने को
मीठी बयार सुनाने को
सबको झूम झूमाने को।
ऐ गुले-बहार कभी मेरे आसियां का रुख कर
थोड़ी देर ठहर
उड़ेल दे खुशबू व रंगों को
मेरे नस नस में भर जानें को
सबके रंग में रंग जाने को।
ऐ चिराग -ए-नूर कुछ तो ऐसी रौशनी कर
थोड़ी देर ठहर
मन का अंधियारा दूर भगानें को
कण कण में उजियारा फैलानें को
हर कोना जगमगानें को।
ऐ शाम ठहर जा थोड़ी देर
कुछ मुझसे बात तों कर
मेरी तन्हाई मिटाने को
सुख दुःख मेरे अपनाने को
सखी मेरी कहलाने को।
ऐ रात के चँदा इतनी इनायत कर
कुछ शीतलता मुझमे भर
जलन मेरी मिटाने को
दर्द छिपा कर चाँदनी बरसाने को।