मेरी मन्नत!
मेरी मन्नत!
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मैं उसे पाने को अपने रब से
मन्नत और उसके कुछ अपनों
से इल्तिज़ा किया करता हूँ!
जिसके लिए मैं कुछ अपनों
और कुछ परायों का दिल अक्सर
ही दुखा दिया करता हूँ!
मैं अब तो अक्सर ही अँधेरे में
भी एक उससे ही तो बातें किया
करता हूँ!
अब तक किसी को कुछ हासिल
नहीं हुआ कुछ भी इस ज़िद से ये
जानता हूँ!
मैं फिर भी ना जाने क्यों ये एक
ज़िद अब बस दुआ की ही तरह
किया करता हूँ!
समझाते है सभी अक्सर मुझे
गर मेरी है वो तो कही और वो
जा नहीं सकती है!
गर परायी है तो मैं उसे पा नहीं
सकता हूँ!
पर ना जाने क्यों ये ज़िद्द अब
मैं बस दुआ की तरह किया
करता हूँ!