मेरे आराध्य : श्री राम
मेरे आराध्य : श्री राम
हे राम ! तुम कौन हो ?
वाल्मीकि के,
कबीर के,
तुलसी के,
या फ़िर तुलसी साहिब के ?
ये नाम केवल प्रतीक हैं
उन सब के जो तुम में अपने
आराध्य देव को खोजते हैं।
हाँ!
तुम आराध्य हो,
मर्यादापुरुषोत्तम कहे जाते हो।
विष्णु का अवतार बन कर
शबरी के बेर खाये,
अहिल्या का उद्धार किया
और भी बहुत कुछ किया, कि
जन-सामान्य तुम्हें पूजने लगा,
तुम जन-जन के 'राम' बन गये।
क्रौंच पक्षी के दर्द से आहत हो
वाल्मीकि आदि कवि बने,
'मरा-मरा' जप कर राममय हो कर
तुम पर रामायण लिख डाली।
पत्नी के प्रेम से वंचित होकर तुलसी ने भी
रामचरित मानस लिख डाली।
विश्व के कई देशों में, कई भाषाओं में
तुम्हारे बारे मे, तुम्हारे होने के साक्षात्
प्रमाण मिलते हैं।
पर थे तो तुम राजा-राम ही, हे दशरथ-पुत्र!
इस धरती पर संसार ने तुम्हारे
'साकार ब्रह्म' का जो स्वरूप देखा,
वो कबीर ने नहीं देखा।
कबीर ने तुम्हें 'आदिराम' कहा
(राम राम सब जगत बखाने।
आदि राम कोइ बिरला जाने।।)
उनके राम निगुण हैं।
(निरगुण राम निरगुण राम जपहु रे भाई।
अवगति की गति लखी न जाई।।)
कबीर के राम हैं,
तुलसी साहेब की 'घट रामायण' के राम जैसे,
जिनको तुलसी ने ही लिखा पर 'मानस' के रूप में नहीं।
'रामचरित' लिख कर तुलसी जन्मे फ़िर एक बार...
परम् तत्व ज्ञान के प्रति,
नई समझ के साथ के जीवन जीने,
उपासना व आध्यात्मिक साधना मार्ग के लिये
संकल्पबद्ध हो कर मार्गदर्शन करने,
तुम्हारा सच्चा स्वरूप उजागर करने।
विश्वास,आत्मबोध और प्रपंचों से
मुक्त होने की समझ देने।
'घट रामायण' और 'राम चरित मानस'
एक ही संत की काव्यात्मक अनुभूति बनी।
( संवत् सोला सै इकतीसाl रामचरित कीन्ह पद ईसाll
ईस कर्म औतारी भावाl कर्मभाव सब जगहिं सुनावाll
जग में कगरा जाना भाई l रावन रामचरित्र बनाईll
पंडित भेष जगत् सब मझारीl रामायन सुनि भये सुखारीll
अंधा अंधे विधि समझावाl घट रामायण गुप्त करावाll)
तुम्हारा यह सच्चा रूप इतना गहन है कि
भक्तगण देख ही नहीं पाते।
जो देख पाते हैं,
वे उसी में रम जाते हैं।
तुलसी साहेब, कबीर-तुलसी के संवत् एक तो नहीं थे।
पर 'राम' के प्रति समभाव रखते थे।
काश ! हम सब उस 'समभाव' को समझ पाते
तो अपने मन में ही 'राम' को पा जाते।