मधुमास बनाम प्रीत की होली
मधुमास बनाम प्रीत की होली
पीत बसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया,
अंग-अंग में छाई अंगड़ाई है,
मधुमास लौट फिर से आया।
नयनों में सतरंगी सपने,
आते-जाते लगते अपने,
सुधि की मोहक अमराई में,
चॉद लगा मन को चुभने।
धरा वधूटी सी सज-धज कर,
नव नेहिल वारिद मॅडराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।
लूट लिया था पतझर ने कल,
तरु-तर उपवन रूप विमल,
कोंपल,किसलय,लतिका मचले-,
कलिका बिहॅसे मधुर धवल।
रोम-रोम में मादक सिहरन,
कुंज-निकुंज शलभ बौराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।
कल आयेगी भोर सुहावन,
भर जायेगी डेहरी-ऑगन,
पुलक धिरकते खग-कुल देखो-,
नवल व्योम छवि रूप लुभावन।
भंग पिये बिन मस्त भृंग से,
मधु माधव ने फिर बिखराया।
पीत वसन धरती ने ओढ़ी,
यौवन फसलों का गदराया।