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Vaidehi VanyA

Others

5.0  

Vaidehi VanyA

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मधुमास बनाम प्रीत की होली

मधुमास बनाम प्रीत की होली

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पीत बसन धरती ने ओढ़ी,

यौवन फसलों का गदराया,

अंग-अंग में छाई अंगड़ाई है,

मधुमास लौट फिर से आया।


नयनों में सतरंगी सपने,

आते-जाते लगते अपने,

सुधि की मोहक अमराई में,

चॉद लगा मन को चुभने।


धरा वधूटी सी सज-धज कर,

नव नेहिल वारिद मॅडराया।

पीत वसन धरती ने ओढ़ी,

यौवन फसलों का गदराया।


लूट लिया था पतझर ने कल,

तरु-तर उपवन रूप विमल,

कोंपल,किसलय,लतिका मचले-,

कलिका बिहॅसे मधुर धवल।


रोम-रोम में मादक सिहरन,

 कुंज-निकुंज शलभ बौराया।

पीत वसन धरती ने ओढ़ी,

यौवन फसलों का गदराया।


कल आयेगी भोर सुहावन,

भर जायेगी डेहरी-ऑगन,

 पुलक धिरकते खग-कुल देखो-,

नवल व्योम छवि रूप लुभावन।


भंग पिये बिन मस्त भृंग से,

मधु माधव ने फिर बिखराया।

पीत वसन धरती ने ओढ़ी,

यौवन फसलों का गदराया।




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