मैं ठहरा रहा
मैं ठहरा रहा
थामने सांसों को
मैं ठहरा रहा !
क्योंकि देखा था तुम्हें
पहली बार खिड़की पर
बालों को सुखाते हुए
झपकाने पलकों को
मैं ठहरा रहा !
देखा था एक तिल
तुम्हारे नीचले होंठ के पास
ज्यों चांद संग वो तारा
रोकने हंसी को
मैं ठहरा रहा !
तुम बोले थे एक बात
जिन्हें सुन दोनों
खूब हंसे, हंसते रहे
सूंघने खुश्बू को
मैं ठहरा रहा !
जब आए तुम नहाकर
बालों को बिखरा कर
छींटें मुझ पर देते हुए
महक बालों की छोड़ने
पकड़ने हाथ को
मैं ठहरा रहा !
तुम बोले मत छोड़ना साथ
मृत्यु शय्या तक
मैंने पकड़ लिया हां कह कर
सुनने को आवाज
मैं ठहरा रहा !
जब मांगता चुम्बन
तुम ' ऊंहूं 'कर देते
सुनाते धड़कन
गहरी सांस लेकर।।