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Shashi Rawat

Inspirational

3  

Shashi Rawat

Inspirational

मैं रोज देखती हूँ उसे

मैं रोज देखती हूँ उसे

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मैं रोज देखती हूँ उसे

सुबह दिन शाम और रात

दूसरी की बातों को सुनते हुए 

उसे कोई जवाब न देते हुए। 


वो सुनती तो सब कुछ है

देखती भी सब कुछ है

पर करती वहीं है

जो उसका मन करता है।


उसे अच्छे से पता है

ये दुनिया कितनी बेरहम है

दूसरों के सपनों को

पैरों के नीचे बेदर्दी से कुचलती है।


हाँ, उसने देखा है

रोज तो वो देखती ही है

आज नकाब ओढे़ अपनेपन का

कल तुम कौन हो जाते है।


हाँ, वो तो चलती है

रोज ही तो चल के जाती है

क्योंकि उसे अच्छे से पता है

आखिर उसे अकेले ही तो चलना है।


हाँ, वो घर भी आती है

रोज ही तो घर आती है

पर पता नहीं कौन सी खुशी 

उसकी आँखों में नजर आती है।


लेकिन अब मैंने सोच लिया है

कि मैं आज उससे मिलूँगी

नजरों से नजरें मिला

आज मैं उससे बात करूँगी।


आखिर आ ही गया वो पल

जब वो मेरे सामने है

मगर ये अचानक क्या हुआ

वो मुझे मेरे जैसी क्यों लग रही है

मैं तो उसकी जैसी नहीं हूँ।


फिर धीरे से वो मुस्कराई

तुम्हारा ही तो अक्श हूँ मैं 

मेरी तरह ही तो 

तुम बनना चाहती हो।


हाँ, सही कह रही हो तुम

मैं बिल्कुल तुम्हारी तरह बनना चाहती हूँ

नहीं, बनना चाहती थी

क्योंकि अब तुम मैं हूँ

और मैं तुम।


हाँ, सही सुना तुमने

मैं खुद को हराना चाहती हूँ

खुद को बदलना चाहती हूँ

क्योंकि जब मैं खुद खुश हूँगी

तभी तो दूसरों को खुश कर पाऊँगी

जब मैं खुद की हिम्मत इकट्ठा करूँगी 

तभी तो दूसरों की हिम्मत बनूँगी।


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