मैं अकेली खड़ी हूँ
मैं अकेली खड़ी हूँ
मैं अकेली खड़ी हूं
शोर है हंगामा है
हर तरफ ..
लोग हैं ..लोगों का कारवां है
हर तरफ ..
बीच भीड़ के पड़ी हूं
मैं अकेली खड़ी हूं
लोग जाने पहचाने हैं ..
रिश्तों के ताने-बाने हैं..
हर कोई
देखता है इस तरफ ..
मैं निगाह मूंदे खड़ी हूं .
मैं अकेली खड़ी हूं।
वह दौर था जब मुझे भी ..
किसी की तलाश थी
बीच समुंदर की लहरों के ..
किसी सहारे की आस थी.
मैं डूबती रही ..
तुम देखते रहे...
जाने कुछ मसरूफियत थी ?
या तुम्हें मेरे यूं ही ..
बच जाने की आस थी !
समंदर से भी लड़ी हूं
मैं अकेली खड़ी हूं।
खैर अब मैं आ गई ..
फिर से तुम्हारे पास हूं
लौट आई हूं लड़ के
समुंदर की लहरों से
बिना तुम्हारे ..
और अब खुद में
एक विश्वास हूं।
अब मांगती नहीं ..
एक नजर की भीख
खुद में व्यस्त हूं...
बहुत अलमस्त हूं ,
खुद से करके दोस्ती
खुद की सहेली हूं मैं
मैं अकेली नहीं
भले अकेले खड़ी हूं
मैं अकेली खड़ी हूं।।