मासूम सा था नादान सा था....
मासूम सा था नादान सा था....
मासूम सा था नादान सा था
वो इश्क हैरान परेशान सा था
चेहरे पर लटकती थी जो जुल्फें
लगता उससे वो बेईमान सा था
वो जो कच्ची उमर का इश्क था
लगता वो सच्चा इमान सा था
खिलखिलाती हँसी जो थी उसकी
उसी मे बसता मेरा सारा जहाँ सा था
बेवरपाह सा था वो जमाने से ऐसे
जैसे हर चीज से वो अंजान सा था
आया वो जिंदगी मे ख़ुशियाँ लेकर लेकिन
कुछ पल ठहरने वाला मेहमान सा था
जाने वाले लौटकर आते नही कभी
फिर भी मुझे उस पर गुमान सा था
मिल जाए अब मुझे कुछ भी लेकिन
तेरा आना न मिटने वाला इक एहसान सा था.....

