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मानवता की वलि

मानवता की वलि

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मानवता के खून से,

संहार ही संहार

फैला है

चहुँ दिश ,

आतंक के साये

में

हम सब जी रहे हैं !!


बच्चे अपना

आज बचपन

खो रहे हैं ,

क़त्ल का है

जश्न

खूनी ....असुर बनते जा रहे हैं !!


भाग्य भी

है बाम

विपदा बढ़ रही है, दुर्घटनायें भी

शिकंजा

कस रही है !!



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