मानो या ना मानो
मानो या ना मानो
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तुम मानो या ना मानो
सच सच ही रहता है,
झुठला देने से सच ना
कभी झूठा होता है।
कभी कभी समय चक्र भी
क्या-क्या करवा देता है,
ना चाहे जो हम अपने
वह भी जीवन में होता है।
मान नहीं रहे हैं यथार्थ को
झूठ के महल सजाते हैं,
कुछ जाने कुछ अनजाने में
ना जाने क्या-क्या होता है।
कल्पनाओं से परे घटित
कुछ घटनाएं हो जाती हैं,
जिसको मान नहीं सकते हम
वह भी कभी-कभी होता है।।।