माँ का प्रेम
माँ का प्रेम
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कलम बगलें झांक रही है।
पन्ना चुप हो के ताक रहा है
माँ की ममता को शब्दों में
कैसे पिरोऊँ, मन ये सोच रहा है,
प्रेम, प्रीत तो बहुतों ने रचा, ममता
रच, इक माँ का दिल कह रहा है,
शब्द होकर भी शब्द निःशब्द है
उपयुक्त शब्द के द्वंद्व में खो रहा है,
जागते हुए भी मन शब्दों के जाल
में उलझकर, थका जैसे सो रहा है,
एक मधुर ध्वनि से तंद्रा भंग हुई
देखा, फोन में एक नाम चमक रहा है,
अहा ! दिल में खुशी, आँखों में चमक थी
फोन में "माँ" जो अंकित हो रहा है ,
हैलो ! माँ प्रणाम..............