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Baman Chandra Dixit

Others

4.5  

Baman Chandra Dixit

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मामा के घर

मामा के घर

2 mins
14


क्या थी उन दिनों की बातों में,

मामा के घर मामी की हाथों में।

मिट्टी की बारामदे में पसरी धूल को,

फूंक कर बैठ जाने का जज्बातों में।।

मामी चिल्लाती,चटाई ला देती ,

लेकिन देख देख वो भी मुस्कुराती।

कटोरी में भेल,सरसो के तेल ,

प्याज छोटी छोटी,मिर्चे लाल लाल।

मुर्रे से फिसल कर प्याज का छिपना,

कटोरी की नीचे बैठ के झांकना।

इधर उधर की सारी वो बातें ,

चहकते रिश्ते महकते नाते।

मुर्रा चबाने का मुस मुस आवाज़,

आज भी जिंदा है खयालातों में।

क्या थी उन दिनों की बातों में।।

कभी बहुत कुछ न होते वहां,

चावल कम, या फ़िर न होता जहां।

कभी पतली,या फिर कभी नदारत,

दाल की बाटी होती थी जहां।

लेकिन न हो कर,नहीं होने का

खालीपन नहीं होती थी वहां।

चावल पूरे नहीं थोड़े ही सही,

डाल के जगह खट्टी सी दही।

नमक मिर्च के अजब साथ का,

या फिर नानी की गज़ब हाथ का।

आज भी वो याद ताजे हैं दिखते ,

यादों की पुरानी परतों में ।

क्या थी उन दिनों के बातों में।।

बाड़ी में तालाब तैरती मछलियां

अमरूद के पौधे अनानस की झाड़ियां

बैंगन टमाटर गोभी पत्ते फूल

हर मौसम के साग सब्जियां।

छीटे मामा के शौक निराली,

डाली में फूल या फूलों में डाली।

भांति भांति की पौधों में फूल,

जैसे रंगों से सजी रंगोली।

मन मोहिनी शोभा क्या कहूँ,

थी वो छोटी सी आहते में।

क्या थी उन दिनों के बातों में।।

लकड़ी का बना छोटा सा वो घर ,

मधुमखियों का था गुज़र बसर।

गुण गुण गुंजन मन मोह लेती,

पास जाने को लगती थी डर।

फूलों फूलों से रस चूसकर,

जमाते कैसे वापस आकर।

देख देख सब समझ पाने का,

कहते जब दोस्तों से मिलकर।

वो दिन जब मामा मधु निकालते,

मधुमखियों से बाते भी करते।

डरते डरते देखते थे हम,

मजे से मधु चखते थे हम।

आज भी रोमांचित हो उठते,

खो जाते यादों की बारातों में।

क्या थी उन दिनों के बातों में।।

मामा के घर का मजा निराला,

मामा का प्यारा मामी का लाडला।

नाना नानी की बात क्या कहें,

उनके लिए जैसे वाल गोपाला।

खाओ पीओ खूब मस्ती भी कर लो,

मामा के जेब को सस्ती भी कर लो।

छुट्टी के दिनों का सही ठीकाना,

पहले से बात पक्की भी कर लो।

जितना भी करो कम ही लगेगा,

मामी की प्यारी बातों में।

क्या थी उन दिनों के बातों में।।


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