लहरें
लहरें
सागर की लहरों में जो कश्ती थी, कागज की।
वो किनारे लग जाती ये काफ़ी ना था।
वो लहरों के आगोश में रहती।
लहरों को ये गवारा ना था।
वो कश्ती गुमशुदा थी।
इस क़दर लहरों के समंदर में
उसे तूफ़ान का अंदेशा ही ना था।
लहरें टकरा के लौट जाती थीं कभी किनारे से।
और वो लहरों की सलवटें कुछ कह जाती धीरे से।
कभी शांत, कभी तूफ़ान का सामना करती रहीं लहरें।
शांत सी छम्म।
और तूफ़ान में कश्ती को खुद में समेट ले गईं लहरें।
यूं ही ना जाने कितनी कश्तियों को खुद में समां लिया इन लहरों ने।
सरसराहट ने कितने ही दिलों की मुश्किलों को सुकून दिया इन लहरों ने।
जब रेत की जमीं पे कदमों से टकराईं लहरें।
ना जानें कितने ही सागरों की लहरों को छुआ मैंने।