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Dinesh paliwal

Others

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Dinesh paliwal

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।। कविता ।।

।। कविता ।।

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मैं कविता हूँ,

साहित्य का में नारित्व रूप,

झरझर निर्मल बस नदी स्वरूप,

मुझमें है क्षोभ और करुणा भी बसी,

ये वीर और हास्य भी आभूषण रस मेरे,

श्रृंगार समाहित, चिर भक्ति रस से सिंचित,

है वात्सल्य बसा अब हरपल आँचल मेरे,

वीभत्स और भय रस से मैं भी घबराऊँ,

हे कविवर अब ये तुमसे कहना चाहूँ,

मुझे तुम मत इन रस में उलझाओ,

पुनः शब्द चयन फिर कर आओ ,

मैं कोमलता की सविता हूँ,

मैं कविता हूँ ।।



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