कवि हूँ।
कवि हूँ।
कवि हूँ मन सबका समझती हूँ
जो मन में आये वो कविता में लिखती हूँ।
सबका रखती ध्यान मन ना किसी का दुःख जाये।
रखती हूँ मैं मेरे मन को उस स्थान पे बुरा किसी को न लग जाये।
असली और नकली चेहरे पहचानती हूँ।
कवि हूँ मन सबका समझती हूँ
जो मन में आये कविता में लिखती हूँ।
झूठ बात की चिढ़ है मुझे पर
सच यहाँ कोई बोलता नहीं।
सबकी है मनमानी यहां और
दूसरों की मन की कोई परवाह करता नहीं।
ऐसे वक्त में मैं चुप रहना जानती हूँ।
कवि हूँ मन सबका जानती हूँ
जो मन में आये वो कविता में लिखती हूँ।
मेरे जैसे सब बन जाओ
ए रहता है मेरा विचार
ना किसी का मन दुखाओ
ना छिड़को जख्म पे किसी के नमक, और आचार
ये सबको समझाती हूँ।
कवि हूँ मन सबका जानती हूँ
जो मन में आये वो कविता में लिखती हूँ।
