क़ुदरती विविधा
क़ुदरती विविधा
धीरे-धीरे भोर की लालिमा में
मन्द-मन्द मुस्कान में
चढ़ता सूरज भोर की पावन बेला
भोर की पहली किरण में।
भोर के प्रकाश में घुलते
चहूं ओर रोशन करते
सूरज की किरणों में
नव-चेतना के साथ धड़कते।
जीवन का स्पंदन स्पंदित होते
अपने चारों ओर बिखरे फैलते
इस फैले हुए प्रकाश में
उजाले में चमकते।
श्वेत पावन आंचल फैलाते
जगत में नवजीवन का संगीत सुनाते
जीवन-राग अपने पावन अंक में ले
सूरज के रोशनी में चांदनी बिसराते।
भोर होते ही पहली किरण के साथ
झूम-झूम धरा पर झूमता-लहराता
अपने हर अगले पल की ओर ले
किरणों के जाल फेंक उन्हें एक सा चमकाता।
सुनहरी खिली-खिली धूप में
विविधा भरे कुदरत के मोहक रुप में
सोचो के पंख लगा, नील-गगन हरित- धरा एक बना
अंतिम छोर तक साथ निभाते
उड़ते जाएं ख़्वाबों में।
