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Dhan Pati Singh Kushwaha

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Dhan Pati Singh Kushwaha

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कठपुतलियाॅ॑

कठपुतलियाॅ॑

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कलाकार हैं हम सारे जन और रंगमंच है ये दुनियाॅ॑।

रामबोला को हुलसी जनती और पालती है चुनियाॅ॑।

रत्नावली के व्यंगों ने उबारा, कहती तुलसीदास दुनियाॅ॑।

ईश्वर डोरियाॅ॑ थामे बैठा, हम अभिनय करती कठपुतलियाॅ॑।


शक्ति तो दें प्रभुजी सबको, पर अहंकार मत होने दें।

धर्म ध्वजा फहराने के हित, कभी कर्मों को मत सोने दें।

उचित आचरण से सुख देवें, दु:ख न किसी को होने दें।

पुण्य भले ही कम हो पाएं, पर पाप न कोई भी होने दें।

लाख भलाई भूल है जाती, भूले न एक भूल दुनियाॅ॑।

ईश्वर डोरियाॅ॑ थामे बैठा, हम अभिनय करतीं...


शक्ति पाकर के कुछ मानव, निज को स्वरूप को भूले बैठे हैं।

होकर मस्त क्षणिक शक्ति मद में, वे तो ओढ़ मूढ़ता बैठे हैं।

कुर्म-कुकर्म का भान न जिनको, खुद को शक्तिमान समझ ऐंठे हैं।

सर्वशक्तिशाली मान के खुद को, दूजों को दीन और हीन समझ बैठे हैं।

कुछ नेता-नौकरशाहों की ऐसी ही, आज अजीब सी है ये दुनियाॅ॑।

ईश्वर डोरियाॅ॑ थामे बैठा, हम अभिनय करतीं...


लाख देंगे भूचाल धरा पर, इस भ्रम का उन्हें गुमान बड़ा है।

वास्तविकता हैं भूले भ्रमवश, सर्वशक्तिमान प्रभू सबसे बड़ा है।

कुछ भूले भटकों संग मिलकर, किया असत्य सा स्वांग खड़ा है।

एक दिन जब टूटेगा यह भ्रम, तब जानेंगे धोखा तो ये हुआ बड़ा है।

हम यथार्थ तो जान सके ना, रही अब तक उलझाती यह दुनियाॅ॑।

ईश्वर डोरियाॅ॑ थामे बैठा, हम अभिनय करती...


नौकरशाह-स्वार्थी नेता मिल एक, तिकड़म ऐसा भिड़ाते हैं।

कुछ चमचे भक्तों संग भरमा जनता, नियंत्रक खुद बन जाते हैं।

स्वार्थ कार्यों को अपने, ये परमार्थ का होने का भ्रम फैलाते हैं।

भ्रमवश भोली जनता के कुछ जन, इनकी कठपुतली बन जाते हैं।

साजिश कुछ पहचान के इनकी, खुद जागकर जगाते हैं दुनियाॅ॑।

ईश्वर डोरियाॅ॑ थामे बैठा, हम अभिनय करतीं...


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