shivani j
Others
हाँ! हाथों की लकीरे मैंने
बार बार पढ़ी है।
आईने में शक़्ल बार बार देखी है।
बनना चाहा जब भी कुछ
ज़माने से औकात बार बार निकली है।
जिद है, तुम जिद ही समझना
जब सौ बार गिर के भी
आसमां छूने की कोशीश बार बार की है।
क्या ये संभव ...
कहानी वही पुर...
पहेली
दिल
जाना नहीं
कसूर
कोशीश
कौन हूँ मैं ?
ख़्वाब