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shivani j

Others

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कोशीश

कोशीश

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हाँ! हाथों की लकीरे मैंने 

बार बार पढ़ी है।  


आईने में शक़्ल बार बार देखी है। 

बनना चाहा जब भी कुछ 


ज़माने से औकात बार बार निकली है।


जिद है, तुम जिद ही समझना

जब सौ बार गिर के भी 

आसमां छूने की कोशीश बार बार की है।  


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