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Anumeha Rao

Others

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Anumeha Rao

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कोहरे का कहर

कोहरे का कहर

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कोहरे ने कुछ ऐसा केहर 

बरसाया है,

पैरों को कलेजे से सिमट 

कर हमने लोगों को पाया है,

ये ठंड हो चला है बेकाबू,

लिबास पहनकर भी इंसान

नहीं कर पाया है काबू,


कांपते ठिठुरते लोग देखे,

सुबह को काम पर चले है,

सर्दी है या बरसात,

बिना परवाह किए,

अपनों के लिए कमाने चले है,


किसी के तन पे है,

एक कपड़ा,

तो कोई सिर्फ टोपी 

लिए है,

कैसे है लोग यहां,

जिन्हें ठंड का भी नहीं एहसास,

सड़क किनारे भिखारी देखे,

कंबल की ख्वाहिश रखते है,

इसलिए तो रोज़ रात वो,

आशाओं की चादर ओढ़ते हैं।



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