कल्पनाएं
कल्पनाएं
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व्याकुल मन की बातें
कल्पनाओं के सहारे
सांत्वना देती हैं मन को
कल्पना कोई भी हो
कभी कोरी नहीं होती है
बीज के बिना भी कहीं
तरूवर की उत्पत्ति होती है
नींव है यथार्थ तो
कल्पना इमारत है
बीज तो सच्चाई है
पर कल्पना ही वृक्ष की ऊंचाई है
कल्पनाओं को सजाते समय
हम ये क्यों भूल जाते हैं
यथार्थ की धरा पर ही
कल्पनाओं के वृक्ष उगते हैं