ख़्वाब
ख़्वाब
अभी टूटा नहीं है ख़्वाब मेरा, और रात ढल गई।
मैं अभी तो आसमां में हूँ ,और यह शाम ढल गई।
सुबह प्रकाश की किरण, मुझको नींद से जगाएगी,
चाँद तारों की सुहानी सी, हर बात याद आएगी।
खोया था मैं ख़्वाबों की दुनिया में अपनी मस्ती में।
बहुत खुश था मैं अपनी, सुंदर ख़्वाबों की बस्ती में।
लौट कर आया हूँ क्यों धरा में अभी, सब छोड़ कर।
ज़िंदगी की सारी खुशियों से अपना मुख मोड़ कर।
छोड़ कर सुहाने सफर को मैं क्यों, लौट कर आ गया।
उड़ रहा था संग तितलियों के, अब मैं कहाँ आ गया।
उसी ख्वाब के लिए अपनी आँखों को मैं बंद करता हूँ।
उस सुनहरे ख़्वाब को मैं बार बार याद करता हूँ ।
काश मेरी ज़िंदगी भी उसी ख़्वाब में बदल जाए।
दुखों के बादल सारे, प्यारी खुशियों में बदल जाए।
ख़्वाब तो ख़्वाब हैं, ये हक़ीक़त बन नहीं सकते।
हक़ीक़त की धरा में रहो, ख़्वाब कुछ दे नहीं सकते।