खूँटी
खूँटी
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एक
मुझे ज़रूरत थी
एक खूँटी की
टाँग सकता था जिस पर
स्वप्न, यौवन, मुखौटा
और दर्द भी अपना
मैंने पार की दीवारें कई
मगर सपाट थी सभी
नहीं मिलनी थी
नहीं मिली कोई खूँटी कहीं।
दो
दिखते हैं एक से
कुछ-कुछ उखड़े हुए
कवि, राजनेता और अपराधी
और दिख जाती हैं
खूँटियाँ जब तब
उनके चेहरे पर
तो कभी उनके स्वभाव में।
तीन
फ़सल पहुँच जाती है
खलिहान में
अनाज चला जाता है
मंडी में
छोड़ दी जाती हैं
या फिर जला दी जाती हैं
यूँ ही खेतों में खूँटियाँ।