कैसा होता अगर
कैसा होता अगर
एक दर्पण चलता साथ - साथ
किसी के पलकों पर
रुके आँसूओं को दिखा देता।
तकलीफ़ देने वालों का
चेहरा वो दिखा देता।
मज़ाक उड़ाने वालों का
खामियाँ वो दिखा देता।
उजाड़ने वालों का
सच्चा रंग वो दिखा देता।
छलने वालों का
खंजर वो दिखा देता।
रुलाकर हँसने वालों का
फ़िदरत वो दिखा देता।
मिटाकर बढ़ने वालों का
नियत वो दिखा देता।
प्यार बरसाने वालों का
सूरत वो दिखा देता।
मुस्कान देने वालों का
महफ़िल वो दिखा देता।
तन्हा भटकने वालों का
टुटा मन वो दिखा देता।
घर से बिछड़ने वालों का
आँगन वो दिखा देता।
काश ! होता ऐसा कोई दर्पण
आने वाला कल वो दिखा देता।