काला
काला
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मेरी उजाड़ बगिया में रचे -बसे खिले कांटों पर
अपनी प्रीत की नरमी की गर्मी सींचकर
मखमली गुलशन का सेज सजा दिया,
मेरी बेरंग ज़िन्दगी में वो इतने रंग भर गया की
अब उसके बाद,
उसके बिना सब स्याह-सा हो गया
धूमिल राख में सब धुंधला-धुंधला सा हो गया।