STORYMIRROR

डा. पांडेय

Inspirational

3  

डा. पांडेय

Inspirational

जीवन मर्म

जीवन मर्म

1 min
221


यह जीवन तुमने पाया क्यो?

इस बात को तुम न जान सके।

जीवन की मूल सार्थकता को,

इक पल भी न पहचान सके।


क्यो आये किसने भेजा यहाँ?

तुम भूल गए सब पाकर नया जहां।

घिर गए हो तुम अँधियारों में

तृष्णा की इन मझधारों में।


कैसे किसको कब झुठलाये,

स्व:महिमामंडन कैसे करवाये।

तुम लगे हो इन पाखंडों में,

वसुधैव कुटुंब हुए नहीं खंडित

हो बस खंडों में।


भौतिकता की अंधी आंधी में मत बहो,

मानव हो कम से कम मानव तो रहो।

दुःख दर्द बाँटना जीवन है

मानवता का सच्चा यह धन है।


जागे हम सब अब भी कुछ गया नहीं,

वरना एक दिन हम पछतायेंगे।

मानव हो कर भी 'अनुराग'

खुद पर ही हम शर्माएंगे।।



Rate this content
Log in

More hindi poem from डा. पांडेय

Similar hindi poem from Inspirational