हर क्रिया की होती है प्रतिक्रिया।
हर क्रिया की होती है प्रतिक्रिया।
गूँज
एक आवाज़, एक गूँज
खिड़कियाँ खुलने लगीं, पर्दों की ओट से लोग झाँकने लगे,
मेरे कपोलों पर तुम्हारे हाथों का वो स्पर्श ,
प्रेम तो नहीं था,
हाँ वो प्रेम तो नहीं था,
दिल की दीवारों से टकरा कर,
चोट गहरी कर गया,
नहीं वह प्रेम तो नहीं था,
एक हथेली में तुमने मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व नाप लिया,
वजूद पर मेरे एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया,
लाल से कुछ निशान कपोलों पर उभर आये,
कभी दुपट्टे ,कभी आँचल से छुपाती हूँ,
लोगों की नज़रों से उन निशानों को बचाती हूँ,
जो नज़र पड़ जाये किसी की तो गिर जाने, टकरा जाने
जैसे सौ बहाने बनाती हूँ,
औरतें उपहास की दृष्टि से मुझे देखती हैं,
हटा के चेहरे से आँचल, निशान अपने दिखाती है मुझे,
कहती हैं ,बड़ी बात नहीं है कोई,
ये तो स्वाभाविक है,
स्वाभाविक, ये शब्द गूँजता मेरे मन में बार-बार है,
किन्तु हर क्रिया की होती है प्रतिक्रिया,
अतः सावधान,
भविष्य में रहना तैयार सुनने को इस गूँज की प्रतिध्वनि,
समझ लेना वह भी स्वाभाविक है,
हाँ, उभरे लाल निशानों को छिपाने के लिए,
नहीं होगा तुम्हारे पास कोई आँचल या दुपट्टा,
सँभाल के रखो अपने इन हाथों को,
काम आयेंगे निशानों को छिपाने के लिए।"
