हमारा प्यारा सीज़र
हमारा प्यारा सीज़र
एक दिन हमारे आशियाने में एक प्यारे से बच्चे का हुआ आगमन,
पधारने से उसके रौशन-रौशन जगमग-जगमग हुआ हमारा जग.
जन्म भले ही कुत्ते के रूप में लिया था उसने पर दीये की भांति
प्रज्वलित हमारे घर का कोना-कोना कर दिया,
नन्हे नन्हे क़दमों से इधर-उधर यहाँ-वहाँ, सर्वत्र चहलकदमी कर
रौनकदार उसने हमारी नन्ही सी दुनिया को कर दिया.
कभी उसको दूध पिलाते, कभी घुमाने उसको ले जाते,
कभी मूँछ खींच के तो कभी गेंद छुपा के उसे भरपूर चिढ़ाते तो कभी घंटे उसके संग खेल के बिताते.
जब भी हम बाजार से आते, कूद कूद के करता था स्वागत,
उसका उतावलापन देख के खिलखिला देते थे वो भी जो थकान से होते थे आहत.
उसकी एकाग्र-चित्तता मन को सभी के भा जाती थी,
दूर से आती पापा की गाड़ी की उसको ना जाने कैसे पहले से ही भनक हों जाती थी.
घर कर पालतू जानवर सच में अपना ही एक बच्चा बन जाता है,
उसके रख-रखाव और लालन-पोषण में मन इस कदर मग्न हों जाता है.
29 जनवरी को उसका जन्मदिन ख़ुशी व शान से मनाते थे हम,
आखिर इसी अनूठे दिवस पर तो हमारे खुशियों के पिटारे ने लिया था जन्म.
उसके लिए केक और मिठाई आती थी ख़ास उस दिन,
खातिरदारी होती थी उसकी, नवाजा जाता था उसे तोहफों से भिन्न भिन्न.
पर शरारती भी बहुत था वो जिसके कारण पड़ती थी उसकी डांट और मार,
फाड़ देता था खेल- खेल में जब वो मम्मी पापा के ज़रूरी कागज़ बार - बार.
पर कौली भर के गले से लिपट जाता वो जिस पल,
सारा ग़ुस्सा सारा क्रोध हर किसी का हों जाता था छूमंतर.
खूब रोये थे हम सभी जब छोड़ के वो दूर चला गया,
क्षण भंगुर और नश्वर है हम, तथ्य पता हैं ये सभी को पर यकीन किसी को ना हुआ.
कुछ लोग नज़रों से दूर होकर भी दिल से दूर कभी नहीं होते,
लाखों में एक था हमारा प्यारा सीज़र, याद कर जिसे हम आज भी मुस्कुरा ही देते ....