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Habib Manzer

Tragedy Inspirational

4.3  

Habib Manzer

Tragedy Inspirational

हम कैसे जीयें, तन्हा रहकर।।

हम कैसे जीयें, तन्हा रहकर।।

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293


हम बैठे रहे घर के अंदर

हम कैसे रहे कैदी बनकर।

बेचैन है दिल समझे ना कुछ

हम कैसे जीयें, तन्हा रहकर।।


ईश्वर अल्लाह क्यूँ याद आए

इस बार मुसीबत में पड़ कर।

हम जीते थे, हमें जीना है

जीना है हमें, ऐसे अक्सर।।


ये दुनिया हमारी अपनी है

ये जन्नत दोजख क्यों सर पर।

उम्मीद नहीं छोड़ी हमने

लड़ना है हमें, अब जी भरकर।।


अब फिक्र करो तुम भी सोचो

विश्वास करो अब तुम खुद पर।

एक ख़्वाब हसीन देखा था कल

उसे सच करना है अब मिलकर।।


कल ख़्वाब में देखा इंसान था

जब आँखें खुली नफरत हर घर।

ये कैसी हुई तेरी फितरत 

मरना है मरो तुम चाहत पर।।


अब सोच हमारी बिकने लगी

अब कैसी ठगी है मज़हब पर।

आगे का सफर क्यों भूल गए

पीछे क्या मिलेगा अब हटकर।।


ये दौर बड़ा ही नाज़ुक है

हम कैसे रहे यूं घबरा कर।

घर के अंदर की सोच अलग

क्या सीख लिया बाहर जाकर।।


अब उठ जाओ, अब तुम जागो

तस्वीर बनाओ मिट्टी पर।

तकदीर के अपने मालिक तुम

तहरीर लिखो खुद कुदरत पर।।


इंसान तो सभी एक जैसे हैं

क्यों भूखा है कोई धरती पर।

हम खा के मरे, कोई भूखे मरे

दस्तूर जहान ऐसा क्यों कर।।


जिस काबिल हो, इमदाद करो

एक वक़्त का फाका भी तू कर।

कुछ उनको दो, कुछ तुम रखो

हो फ़र्ज़ अदा इंसान बनकर।।


मुश्किल है मगर इंसान बनना

है काम कठिन पर कोशिश कर।

साबित भी करो ज़िंदा हो तुम

क्यों जीते रहो मुर्दा बनकर।।


हर काम करो घर में रह कर

एहसान करो इतना खुद पर।

तुम कैद करो खुद को घर में

अब घर में रहो यूं ही मंज़र।।


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