हम और तुम
हम और तुम

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अपने-अपने मुखौटों में हम-तुम
कैसे खुद को छुपा कर बैठ गए है
हम-तुम अपने-अपने मैं के साथ रहे
और बाकी सब को हम भूल गए है
सपने जो हम ने साथ-साथ देखे थे
सारे वो फिर कैसे तार-तार हो गए है
देखने में तो मैं अब भी कली ही हूँ
पर मुझ पर भी भँवरे मंडरा गए है
क्या हम अपने-अपने मैं को त्याग कर
तुम और मैं भी अब हम हो गए है !