STORYMIRROR

हे परम पिता

हे परम पिता

1 min
899


गगन पवन बन उपवन

मगन आनंदमय

कुसुम कालिका बीथिका लतिका

पुलकित किसलय

सलिल तरंग अतुल उमंग

नर्त्तन रत नित्य

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।।


सन सन स्वन चालित पवन

सुललित सुमधुर

गूँजे मधुप कली कुन्जे कुन्जे

कुंजन बारम्बार।

साँझ सितारा मोती की पिटारा

सारा नभ परिव्याप्त।

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।


कोयल कुहूके कुसुम महके

मोहित मन प्राण

पायल की सम सुमधुर गान

झींगुरों की ऐक्य तान

जैसे निमीलित पलकों के तले

लाख ख़्वाब विमोहित।

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।।


विमुग्ध बिमल क्षरे अबिरल

शीत पूत ज्योत्स्ना राशि

आनंदाश्रु सम अश्कों की कण

बिखेरे शबनमी मोती

निसि नास पास आगत दिवस

अरुणारोहि आदित्य।

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।।


शुप्त संसार की गुप्त चेतना को

जागृति गीति सूरे

गतिमय किया अचेत चेतना

कर्म-मय झनकारे।

अम्बर धरणी सागर सरणी

सभी मे तेरा अस्तित्व।

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।।


शत प्रणिपात मिन्नतें सहस्र

घना करो घनश्याम

करुणा कणों से शिक्त करो नाथ

शरणागत के प्राण

अन्त काल सन्निकट होवे जब

चित्त चिन्तामणि लिप्त।।

हे परम पिता! तुम ही तुम हो

चराचर महि व्याप्त।।



Rate this content
Log in