गमों के सैलाब ने
गमों के सैलाब ने
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गमों के, सैलाब ने
इस कदर डुबोया।
कभी उबर, ना सके
कोई किनारा, तो ना मिला।।
चाहने वाले, यूँ मिले बहुत
कोई मुस्कराया, किसी ने रुलाया।
बुत-ए-काफ़िर, थे सभी
आश़िक-ए-जाबांज, तो ना मिला।।
बेज़ार है मन, सूखा है उपवन
कहीं कोई, बहार नहीं।
आशाओं पर है, लू की तपन
सावन का, मौसम भी तो ना मिला।।
कर्मों का खेल है, जीवन सारा
पाप क्या, पुण्य भी क्या।
जन्नत की बात, करते सभी
उन्हें दोज़ख भी, तो ना मिला।।
अच्छे दिन और विकास का
यहाँ नहीं, किसी को वास्ता।
जो कहें, वही करें 'मधुर '
ऐसा नेता, तो ना मिला।।