***गज़ल***
***गज़ल***
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ज़िन्दगी जीने का अपना अन्दाज निराला है,
एक हाथ अमृत तो दूजे हाथ हलाहल का प्याला है।
ज़िन्दगी गुजर रही इसी कशमकश में की,
दुख का चादर ओढ़े हैं की गले में डाले मोतियों की माला है।
आजाद होकर भी बंधा हुआ सा लगता है,
रूह जिस्म की और मन पर किसी परछाई का साया काला है।
बेखबर औ बेपरवाह जीवन जीने की तमन्ना है,
अपनी धुन में रहने औ गाने का मन में एक जियाला है।