गान तान जान उसको
गान तान जान उसको


सहस्त्र नमन उसको,
देश के लिये बलिदान जिसको,
गान तान जान उसको,
देश भेष धर्म प्रणाम जिसको।
कोई शह नहीं इतिहास अमर होता है,
भारत मां कोई बेटा चुप नहीं होता है।
यह गुमराह भीड़ जनता है जनमानस नहीं,
वरना मिथ्यागति क्या होती है पता चलता है।
यह साथ क्या निभायेंगे,
जव बक्त़ से पहले चले जायेंगे,
यह क्या तोड़ेगे मंदिर मस्जिद,
यह अपनों का खून बहायेगें।
यह चंचल मन की सरकारें,
और इनके मचलते महानुभाव,
मिथ्या भाषण झूठी योजनायें,
और फैलाते अराजकतावादी भेदभाव।
यह कौवों का झुंड है,
लोकतंत्र तो स्वतंत्र है,
यहां जाति-धर्म विकास है,
और राजतंत्र सा मंत्र है।
यह रोज की लेखनी का असर है,
और दो चार पन्नों का कत्ल है।
न जुबां लड़खड़ाती है,
न तेरी जागरुकता पर कोई असर है,
हाल नहीं देखते समाज का ,
प्रत्याशी देते जाति का।
यह जनता के लोग ईमानदार नहीं होते,
पौआ पीते हैं करोड़पति और नबाब का।