STORYMIRROR

Jalpa lalani 'Zoya'

Children Stories Children

4  

Jalpa lalani 'Zoya'

Children Stories Children

एक नन्ही की आपबीती

एक नन्ही की आपबीती

2 mins
155

आख़िर आज वो दिन आ ही गया 

सब को देखकर मैं हँसी उड़ाती थी। 

आज मुझे भी स्कूल पड़ रहा है जाना 

आख़िर मेरी ज़िंदगी में भी आ गई आंधी।

 

मेरी भी छीन ली गई आज़ादी 

चलो आपको बताती हूँ 

एक नन्ही की आपबीती। 


स्कूल का वो पहला दिन 

पर है मेरी ये लिखिता 

शायद आपको भी स्कूल का पहला दिन याद दिला दे मेरी ये कविता। 


जब चली थी घर से माँ के संग 

कुछ अच्छे नहीं थे मेरे ढंग 

कैसे भूल पाऊँ मैं वो प्रसंग 

कितना किया था मैंने माँ को तंग। 


स्कूल का गेट देखते ही

चल पड़ी थी मेरी नौटंकी 

वो माँ का हाथ ज़ोर से पकड़कर

ज़ोरो ज़ोरो से मैं रोती। 


मैं तो इतनी नन्ही सी छोटी सी

टीचर थी बड़ी लंबी सी 

माँ का वो मेरा हाथ छुड़ाकर जाना

बार बार गर्दन मोड़ के मेरा देखना। 


वो हाथ में मेरे एक बार्बी वाला बैग 

गले में तंगी थी एक बोतल 

कैसे संभालू मैं इतना बोझ 

याद आ रही थी माँ की गोद। 


मुझे रोते देख टीचर ने दिलाई टॉफ़ी 

पर मैं कहाँ थी मानने वाली

फ़िर लगा दी टीचर ने एक थपकी। 


बस फ़िर तो क्या था

ढूंढना पड़ा मुझे एक कोना 

पास बैठी थी एक गुड़िया सी प्यारी 

हो गई मेरी उससे दोस्ती न्यारी। 


खेलने लगे थे साथ-साथ

नास्ता लिया था हमने बाँट 

भूल गई थी रोना-धोना उस पहर

जैसे स्कूल ही बन गया था मेरा घर। 


आ गया वो समय, माँ को सामने 

खड़ा देख हो गई मैं आनंदमय 

दौड़ के लिपट गई मैं माँ से ऐसे

जैसे पहली बार मिली हो उनसे। 


कूदती, हँसती, गाती, चहकाती 

चल पड़ी पकड़े माँ का हाथ 

आ गया ना आपको भी याद, 

वो स्कूल का पहला दिन, वो प्यारा बचपन।


Rate this content
Log in