एक नई सोच
एक नई सोच
बारात वापिस लेकर हम जाएँगे
अगर दस लाख नहीं आप हमें थमायेंगे
बेटे को पढ़ा - लिखा कर अफसर बनाने में
लगाया है, पता नहीं कितने लाख
हम तो माँग रहे है, सिर्फ दस लाख
लड़की का पिता रो-रो कर उन्हें मना रहा था
अपनी मज़बूरी का दुखड़ा सुना रहा था
तभी दूल्हे ने कहा चिल्लाकर
पापा आपने क्यूँ मुझे बेच दिया यहाँ आकर?
आपने मेरे ऊपर जो रुपया लगाया है
उसे इनके आगे क्यूँ गाया है?
पैसा तो इन्होंने भी लगाया है,
अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर डॉक्टर बनाया है
हम क्या उसका बोझ उठाएँगे
वो भी घर में कमा कर लाएगी और
सुख-दुख में साथ निभायेगी
महान तो वो पिता है,
जो अपनी बेटी भी से रहा है और
एक बार भी एहसान नहीं जता रहा है
जो भी लिया है इनसे पैसा उसे लौटाइए वैसे का वैसा
जो भी वो कमा कर लाएगी
उसे अपने माँ-बाप की सेवा में जब मन चाहेगा लगायेगी
