एक चिट्ठी तुम्हारे नाम
एक चिट्ठी तुम्हारे नाम
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं, तुम्हारे नाम ।
जिसमें कुछ सुनहरी सुबहें
और कुछ प्यारी शाम ।
दोपहर की तपतपाती धूप
और थोड़ी पीपल की छांव ।
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं, तुम्हारे नाम ।
जिसमें खेतों की वो पगडंडी
या फिर वो गहरी कूपे।
मिट्टी के गोल मटोल चिपटे टीले
या फिर बगीचे की वो छोटे बड़े पौधे ।
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं, तुम्हारे नाम ।
विद्यालय के वो खेल मैदान
लड़ते झगड़ते घर के रास्ते ।
लूका छिपी में बीतती शाम
सुनहरे सपनों में गुम होती रात ।
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं , तुम्हारे नाम ।
हर एक मेले में भीड़ का मज़ा
ग़लतियों पर मिली हर वो सजा ।
जीत के जश्न में सबका साथ
बुरे वक्त में कंधे पर सबका हाथ ।
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं, तुम्हारे नाम ।
थोड़ा सा कम है ये जज़्बात
आ जाता हूँ बांटने पुराने ख्यालात ।
अब कुछ पल के लिए सब्र रखना
मिलके तुमसे पूरा करेंगे बचपना ।
सोचता हूँ
एक चिट्ठी लिखूं, तुम्हारे नाम ।
