एक बुढ़िया
एक बुढ़िया
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एक बुढ़िया थी बड़ी ही नेक,
आई थी वो लाठी को टेक।
मैंने पूछा यह क्या माई,
तेरा नहीं कोई अपना भाई।।
बुढ़िया बोली-
मैं हूँ बेटा बड़ी दुखयारी,
गरीबों की बस्ती से हूँ आई।
झोपड़ी ही है मेरा घर,
भीख मांग करती हूँ गुजर-बसर।।
दे-दे बेटा तू दो अन्न,
भगवान रखे तूझे सदैव प्रसन्न।
बुढ़िया के सुन आशीर्वचन,
हृदय द्रवित हुआ व्याकुल मन।।
मैंने ठाना,
आओ बनाएँ भारत को दुखों से मुक्त,
सभी सुखी हो और रहें उन्मुक्त।
यही है भारतवर्ष की आनेवाली तस्वीर,
सभी सुखी, संपन्न रहें भाव मिटे गरीब, अमीर।।