दोष तुम्हारा नहीं!
दोष तुम्हारा नहीं!


मधुमय प्रीत की रातों में भी, बैरागी सा एकाकीपन,
सांसों की सुरभित क्रीड़ा, पर खिन्न क्षुब्ध सा मेरा मन!
बाहों के ये हार भी अब, अतृप्त हृदय को करते हैं,
आने वाले कल का, कल्पित कोलाहल मन भरते हैं!!
बीते कल के अंधियारे में, जो था मैंने खोया है!
खंडित जो भी बचा रहा, बस उसी भविष्य को बोया है!
इसीलिए मेरी रातों में, डर है.. पीड़ा.. विरानी है!
मरघट सा एकाकीपन है, रिक्त ह्रदय की मनमानी है!
अब क्या बोलूं क्या समझाऊं, कब तक बैरी मन बहलाऊं!
कैसे काटूं रैन विरानी, द्रवित हृदय कैसे सुलगाऊं?
दोष तुम्हारा नहीं प्राण, मेरी किस्मत की है ये रातें!
सीधा सच्चा प्यार तुम्हारा, बहकी बहकी मेरी बातें!!