दिल्लगी
दिल्लगी
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बात कुछ और थी कुछ बतानी पड़ी
आरज़ू दिल की हर इक दबानी पड़ी ।
ये ज़माना न बदनाम करदे तुझे
दिल्लगी फिर सभी से छिपानी पड़ी ।।